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“वायदों की सौगात का बजट”

Posted by : A K MALIK on | Mar 21,2015

“वायदों की सौगात का बजट”

वायदों  की सौगात का बजट
                                                           - आमिर खुर्शीद मलिक
आम बजट भी आम लोगों की उम्मीदों पर ही खरा नहीं उतर पाया । यह बजट आम लोगों को चुनावी वायदे जैसे फायदे के वायदे करता हुआ नजर आया। हालांकि ख़ास लोगों की ज़मात ने इस बजट का स्वागत किया है । लोकसभा में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने आम बजट का पिटारा तो खोला ,पर मध्यम वर्ग के लोगों को इससे मायूसी ही हाथ लगी। बजट को लेकर अपेक्षाएं हमेशा रहती हैं, जो इस बार कुछ अधिक ही थीं, क्योंकि इस सरकार का पहला पूर्ण बजट था।  लेकिन इस बजट के बाद लोगों को अच्छे दिन आते नहीं दिखाई दे रहे।प्रधानमन्त्री द्वारा जिस कडवी दवा का ज़िक्र किया जा रहा था , शायद उस कडवी दवा की पहली खुराक सामने आ गई है । हालांकि बजट को लेकर बड़े उद्योगों की ओर से अधिकतर सकारात्मक प्रतिकिया आई है। इंडस्ट्री के अधिकतर नुमाइंदे बजट को बेहतर मान रहे हैं । कुल मिलाकर इंडस्ट्री के ज़्यादातर लोगों ने इस बजट को अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर माना है।इंडस्ट्री के इस रुख को बजट में कॉर्पोरेट टैक्स की दर 5 प्रतिशत कम करने के बड़े तोहफे की उपज माना जा सकता है। उधर अमेरिकी मीडिया ने भारत की नई सरकार के पहले पूर्ण बजट को वृद्धि उन्मुख बताते हुए कहा है कि वित्तमंत्री अरुण जेटली की घोषणाओं से निवेश को मजबूती मिलेगी और बुनियादी ढांचे पर जोर बढ़ेगा।

लोगो को अपेक्षाएं थी कि इस बजट में सामाजिक सुरक्षा व जनता को महंगाई से निजात दिलाना बजट की बुनियादी परिकल्पना होगी । यदि आम लोगों की दृष्टि से देखें तो इस बार का बजट आम लोगों की आधारभूत आवश्यकताओं पर खरा नहीं उतरा है। मध्यवर्ग को आयकर सीमा में पिछले बजट में प्रदत्त सीमा में कोई और छूट ना मिलना अखर रहा है । बढती महंगाई के मद्देनज़र मध्यम वर्ग के लिए यह छूट सभी विशेषज्ञ आँक रहे थे । नौकरी पेशा और छोटे व्यवसायी के लिए यह छूट बहुत मायने रखती है । सर्विस टैक्स में बढ़ोत्तरी आम नागरिकों की जेब पर अतिरिक्त बोझ डालने जैसी ही है। पहले से ही सर्विस टैक्स के दायरे में आये तमाम छोटे धंधे 12.36 प्रतिशत को पिछली सरकार की ज्याद्दती मान रहे थे । लेकिन इस दर को 14 प्रतिशत तक पहुचाने के ऐलान से कीमतों में वृद्धि की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता ।सर्विस टैक्स में वृद्धि की मार का सबसे अधिक असर वेतनभोगियों और मध्यम वर्ग पर ही पड़नेवाली है। इसी वर्ग ने मोटे तौर पर मोदी के पक्ष में वोट भी दिया था। अपने बचाव में जेटली का कहना है कि देश का अगर विकास होता है तो उसका फायदा सभी वर्गों को प्राप्त होता है, जिसमें मध्यम वर्ग भी शामिल है। दूरगामी प्रभावों को देखा जाए तो कॉरपोरेट सेक्टरों में दी गई 5 फीसदी की छूट से आने वाले समय में युवाओं को रोजगार के अधिक अवसर विकसित हो सकते हैं ।परन्तु उसके लिए कई और बुनियादी बदलाव भी लाने होंगे ।अगर पिछले आंकड़ों पर नज़र डालें तो 2005 से2010 केबीचदेशमें270 लाखरोजगारउत्पन्नहुए, परंतुस्व-रोजगारमें250 लाखकीकटौतीहुईऐसे में प्रभावी रोज़गार केवल20 लाखलोगो के लिए ही फायदेमंद साबित हुआ इसअवधिमेंलगभग10 करोड़युवाओंनेअपने कैरियर की शुरुआत की परन्तु केवल5 प्रतिशतयुवाओंकोरोजगारमिल पाया यही बड़ा अंतर पिछली सरकार के लिए युवा वर्ग के असंतोष का कारण भी बना ।इस दौरान मैन्युफैक्चरिंगमेंरोजगारमें7 प्रतिशतकीकटौतीहुई थीहालाँकि यह उन्नत मशीनरी की आमद का संकेत था । पर रोज़गार घटने का खामियाजा मनमोहन सरकार के लिए चुनौती बन कर सामने आया ।देशकीआर्थिकविकासदरबढ़ी, उद्योगोंनेलाभकमाया, सेंसेक्समेंउछालआया, परंतुरोजगारके अवसर कम हो गए।यही स्थिति आगे नहीं होगी ऐसी कोई ठोस आशा यह बजट भी जगा नहीं पाया है ।

इस बजट में मुद्रा बैकों की योजना में 1000 करोड़ का निवेश एक अच्छा कदम है ।हालांकि इसको अधिक विस्तृत रूप दिया जाता तो और बेहतर परिणाम की आशा की जा सकती थी ।जीडीपी के नाम पर आंकड़ो का खेल जारी है । महंगाई से जनता परेशान हो चुकी है, उसको तुरंत हल की उम्मीद थी । अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमते कम होने के बावजूद रेल किराए में कमी का न होना लोगो को अखरा ।लेकिन इससे भी ज्यादा जरुरी वस्तुओं के माल भाड़े में वृद्धि से महंगाई की एक और दस्तक भी सुनाई पड गई है । भारतीय उपभोक्ता परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अनन्त शर्मा कहते हैं कि बजट में सामाजिक सुरक्षा व जनता को महंगाई से निजात दिलाना बजट की बुनियादी आवश्यकता होनी चाहिए। वित्तमंत्रीकंपनियोंकोआकर्षितकरनाचाहतेहैं, परंतुवेभूलरहेहैंकिविदेशीनिवेशकोंद्वारासस्तेमालकाउत्पादनकियेजानेसेतमामस्व-रोजगारबंदहोजातेहैंमेक इनइंडियायदि वर्तमान स्वरुप में ही  सफलहुआतोभीआमआदमीकोरोजगारछिनने के आसार बनेंगे ।मेक इन इण्डिया की परिकल्पना निःसंदेह अच्छी है , पर उसमें स्थानीय लोगों के रोजगार की भी सुरक्षा आवश्यक है । वेल्थटैक्सकोखत्मकरकेएककरोड़रुपयेसेज्यादाकीसालानाआमदनीवालेवर्गपरकरकीदरबढ़नेसेआमआदमीयामध्यमवर्गकोज्यादाफर्कनहींपड़ता। इस क़दम का तो स्वागत किया जाना चाहिए ।विदेशोंमेंजमाकालेधनकोवापसलानेमेंविफलताकेबादसरकारनेबजटकेजरियेनयाकालाधनपैदाहोनेकेखिलाफकार्रवाईकेप्रावधानकियेहैं

बजटमेंइंफ्रास्ट्रक्चरकेविकासपरखासाजोरदियागयाहैइसकेआवंटनमेंकाफीवृद्धिकीगयीहैइंफ्रास्ट्रक्चरकेअलावामैन्युफक्चरिंगक्षेत्रकेलिएभीइसबजटमेंकाफीकुछहैमैन्युफैक्चरिंगक्षेत्रकेविकाससेरोजगारसृजनकीसंभावनाओंमेंवृद्धिहोगी।लेकिन अगर वर्तमान ढर्रे पर ही काम किया गया तो रोज़गार में कटौती से इनकार नहीं किया जा सकता ।वित्तमंत्रीनेसंपत्तिकरकोखत्मकरदियाहैहालांकि इसेखत्मकरनेकीबजायसहीतरीकेसेलागूकिया जाता तो आर्थिक मोर्चे पर सम्पत्ति से उपजे कर का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता था वित्तमंत्रीकेदोउद्देश्योंमेंपरस्परअंर्तविरोधहैवेचाहतेहैंकिदेशपश्चिमीदेशोंकीतरहविकसितहोजायेसाथ-साथवेआमआदमीकेलियेअच्छेदिनलानाचाहतेहैं, यानीरोजगारभीबनानाचाहतेहैंयेदोनोंसाथ-साथनहींचलसकतेहैंवित्तमंत्रीकोविश्वअर्थव्यवस्थाकीइससच्चाईकोअनदेखानहींकरनाचाहिएबहुराष्ट्रीयऔरघरेलूबड़ीकंपनियोंकेसहारेअच्छेदिननहींआ सकते
देशमेंकेवलतीनफीसदीलोगहीआयकररिटर्नदाखिलकरतेहैं।यह कोई अच्छी स्थिति नहीं है ।इसलिएकरनहींदेनेवालोंपरशिकंजाकसनेकीजरूरतहै गरीबआदमीकेलिएपेंशनस्कीमकीघोषणाअच्छाकदमहैइससेकरोड़ोंगरीबोंकोसामाजिकसुरक्षामिलपायेगीसरकारनेइसकेअलावासामाजिकसुरक्षाकेलिएकुछऔरभीघोषणाएंकीहैसाथही, सब्सिडीकेबोझकोकमनहींकियागयाहैऐसीआशंकाथीकिबजटमेंयूरियाकीकीमतकोबाजारकेहवालेकियाजासकताहै, लेकिनकिसानोंकेहितोंके दबाव को कोदेखतेहुएऐसानहींकियागया

एकअन्यनीतिगतबदलावकेरूपमेंदेशकेबडे़नौबंदरगाहट्रस्टोंकोआधुनिकऔरविकसितक्षमताहासिल करते हुए निगमितकरनेकाफैसलालियागयाहैयहएकबड़ीआवश्यकताथीलेकिनइसकदमसेसरकारनेसंगठितमजदूरसंघोंसेटकरावकाखतराभीसामने नज़र आरहा हैबडे़इंफ्रास्ट्रक्चरकेमहत्वपूर्णक्षेत्रमेंवित्तमंत्रीनेपिछलेसालकेआवंटनमें70 हजारकरोड़बढ़ातेहुए3,17,889 करोड़कीराशिनिर्धारितकीगयीहैइससेकुछ बदलाव तो अवश्य आएगासरकाररेल, सड़कऔरसिंचाईपरियोजनाओंमेंनिवेशकेलिएबांडजारीकरेगी, जिसपरकरछूटभीमिलेगीयहछूटलोगोंकोबांडखरीदनेकेलिएप्रोत्साहितकरेगी। सुकन्या योजना को और बेहतर तरीके से प्रोत्साहित किया जा सकता था ।इसीतरह4000 मेगावाटक्षमताकीपांचनयेबिजलीपरियोजनाएंघोषितकीगयीहैंकुदानकुलामपरमाणुबिजलीपरियोजनाकीदूसरीइकाईकीयोजनाभीहैअन्य प्रमुख घोषणाओं में सरकारनेअतिरिक्तएकलाखकिलोमीटरसड़कबनानेकीघोषणाभीकीहैग्रामीणरोजगारगारंटीयोजनामेंआवंटनपांचहजारकरोड़रुपयाबढ़ाकर40,699 करोड़करदियागयाहै, लेकिन, सरकारनेइसेभवन, सड़कऔरनहरजैसेनिर्धारणकरनेयोग्यलक्ष्योंकेसाथजोड़नेकीपहलकीहैछोटेव्यापारियोंकेलिए20 हजारकरोड़रुपयेकेकोषकेसाथएकमुद्राबैंककीशुरूकरनेकीघोषणाकीगयीहैअगरयहसफलहोतीहै, तोयहनयेउद्यमियोंकेलिएबड़ाअवसरहोगा । लेकिन व्यवहारिक धरातल पर सिस्टम की जटिलताएं इसमें रुकावट डाल सकती है ।इसके लिए अगले कुछ महीने सरकार की कार्यशैली ही इन योजनाओं की दशा और दिशा तय करेगी ।

हर बज़ट में सब्सिडीएक बड़ा मुद्दा होती है जिसमेंलगभग 3.77 लाखकरोड़रकमखर्चहोतीहैधूम-धड़ाकाबजटकीआकांक्षारखनेवालोंकेलिएयहबड़ापकवानहै।हर वर्ष बड़े वायदों और उम्मीदों के बीच मनपसंद योजनाओं को परवान चढ़ाया जाता है ।भारतकीराजनीतिकव्यवस्थाके कारण हरसरकारकोताकतवरसमूहोंकासामनाकरनापड़ताहैइसीतरहगरीबीरेखासेनीचेबसरकरनेवालेलोगोंकोसब्सिडीपरखाद्यान्नआपूर्तिभीअहम मुद्दा बन जाताहै। पिछली सरकार की इस योजना पर भाजपा ने काफी हो हल्ला मचाया था । पर उससे मुंह मोड़ने का साहस नई सरकार भी नहीं कर सकी । इसी तरह मनरेगा को सरकारी पैसे की फिजूलखर्ची बताने वाली भाजपा भी मनरेगा के पिछले बजट के प्रावधानों में बढ़ोत्तरी करने को मजबूर हो गई । जब तक सरकारें अपनी कथनी और करनी में सामंजस्य नहीं लाती , बजट के ढुलमुल प्रभावों से देश विचलित होता रहेगा । जो भी घोषणाएं और योजनाये सामने लाई जाती हैं, उन पर ठोस क़दम व्यवस्था को दूरुस्त करते हुए सामने आने चाहिए ।

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