‘आप’ के उदय के साथ ही देश की राजनीति में अंदर ही अंदर बदलाव की बयार तेज हो गई है।
भ्रष्टाचार के विरोध में बही बयार में नई किस्म की राजनीति का बिगुल आम आदमी
पार्टी ने बजाया ।अन्ना हजारे के नेतृत्व में जन लोकपाल आंदोलन से उपजी
परिस्थितिओं से उत्साहित अरविन्द केजरीवाल ने जनाक्रोश को राजनितिक अमलीजामा
पहनाने में कोई देर नहीं की । भ्रष्ट राजनीति और सुस्त शासन के गठजोड़ को तोड़ने के
वायदे लेकर चुनाव मैदान में उतरे केजरीवाल को दिल्ली की गद्दी तक पहुचने में
अप्रत्याशित सफलता मिली । ऐसे में इस नई राजनीति के असर को नज़र अंदाज़ करना
राजनीतिक विश्लेशको के साथ-साथ स्थापित धुरंधरों के लिए भी मुश्किल हो रहा है । कांग्रेस जहाँ राहुल गांधी को इन बदली
परिस्थितियों में बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने में असफल साबित हुई है , वहीँ भाजपा को भी संघ से ज्यादा सतर्क हो
कर रणनीति अपनाने का निर्देश मिल चूका है । कई जगह भाजपा और कांग्रेस के नेता आप
के तौर-तरीकों को अपनाते नज़र आरहे है । जिससे जनता अगले चुनावों में उनको इस कसौटी
पर भी खरा मान सके ।आप पार्टी ने भारतीय राजनीति में प्रचलित धारणाओं को तोड़ने का
काम किया है। जिसके साथ सामंजस्य बैठाना पुरानी पार्टियों के लिए आसान काम तो नहीं
होगा ।
मोदी की आक्रामक
प्रचार शैली भी भाजपा को फायदा नहीं पहुंचा पाई । भ्रष्टाचार बनाम विकास के नारे
की तर्ज़ पर भाजपा दिल्ली को वो उम्मीद नहीं दिखा पाई जो पिछले लोकसभा चुनाव में पूरे
देश में आसानी से प्रभाव जमा गई थी । दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल की आम राजनीति
ख़ास को बढ़ने से रोकने में कामयाब हो गई । भाजपा ने सीटें तो गंवाई ही , साथ ही “आप”
के के इस चमत्कार का सन्देश पूरे देश में जाने की चिंता भी उसके लिए पैदा हो गई । सबको
परख चुकी जनता ने एक नई पार्टी को भरपूर मौका देने का निर्णय लिया । जनसंपर्क में
माहिर भाजपा जैसी पार्टी भी आप के इस नए फंडे से विस्मित नज़र आ रही है।वर्तमान
परिस्स्थितियों में भाजपा अपनी आक्रामक शैली को पुनः आधुनिक तरीकों से लैस करती
नज़र आ रही है ।सोशल मीडिया की भूमिका को हालांकि मोदी समर्थक अपनाते रहे हैं ।पर
केजरीवाल के समर्थन में जुड़े युवा मतदाताओं का जुटना भाजपा के लिए चिंता का सबब
जरूर बन गया है । आने वाले चुनावों में भाजपा मोदी नामक वैतरणी के सहारे पार होने
का आत्मबल दिखा रही है , लेकिन कांग्रेस की खामियों से उत्साहित भाजपा आम आदमी
पार्टी के नए तेवरों से चिंतित जरुर है।
कांग्रेस इन हालातो में सबसे ज्यादा नुक्सान में नज़र आ रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार ने इसके शीर्ष
नेतृत्व को अंदर तक झकझोर दिया है। एक ओर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र
मोदी की आक्रामक प्रचार शैली तो दूसरी ऒर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल
को जनता का अभूतपूर्व समर्थन,दोनों ही स्थितियां पार्टी में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल
गांधी को मैदान में बने रहने की दावेदारी को
नुकसान पहुंचा रही हैं। ऐसे में सर्वाधिक कसरत की जरुरत कांग्रेस को ही है । लोकसभा
चुनाव के बाद दिल्ली विधान सभा चुनावों में भी बुरी तरह हुई हार ने आगामी खतरों से
उसे आगाह कर दिया है । युवराज राहुल को लेकर जो सनसनी कभी भारतीय मीडिया के एक पक्ष
ने पैदा की थी वह मोदी और केजरीवाल की चमक से लगभग खत्म सी हो गई है।
आम आदमी पार्टी ने भारतीय राजनीति में प्रचलित धारणाओं को तोड़ने का काम
किया है। यह स्पष्ट है कि पार्टी ने अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने के अपने लक्ष्य
को प्राप्त करने के लिए मीडिया का खूबसूरती से इस्तेमाल किया है। हालांकि भारतीय
राजनीतिक पार्टियां पारंपरिक मीडिया और होर्डिंग्स पर अपने प्रचार के लिए जमकर
पैसे बहाती रही है, आप पार्टी ने इस
मोर्चे पर एक उदाहरण पेश किया है। पार्टी का निर्णय कि वह सोशल मीडिया और
डोर-टू-डोर कैंपेन पर ज्यादा जोर देगी, कारगर नज़र आरहा है । इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
और प्रिंट मीडिया पर विज्ञापन के खर्च को कम से कम करने का प्रयास किया । एक सर्वे
के अनुसार, युवा मतदाताओं से
सोशल मीडिया पर चर्चा बेहतर साबित होगी । क्योंकि ये डिजिटल माध्यम से किसी अन्य
माध्यम की अपेक्षा ज्यादा परिचित हैं।शायद यही वजह है की इस युवा वर्ग के बीच भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र
मोदी के सोशल मीडिया के प्रचार की बदौलत आज वह अपने समकक्ष प्रत्याशियों से कहीं
आगे आ खड़े हुए हैं । लेकिन इस बढ़त को आम आदमी पार्टी के कैम्पेन से नुकसान पहुँचा है । हालांकि, यह सच है कि अकेले सोशल मीडिया पर प्रशंसकों की
संख्या से चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं। लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा
सकता कि इस रणनीति से अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने और उनकी समस्याओं को जानने
में मदद मिलती है ।जोकि चुनावी समर में अदभुत परिणाम देती है ।इसकी एक बानगी हम इस
दिल्ली चुनाव में देख ही चुके हैं ।जिसने तमाम चुनावी विश्लेषकों को दांतों तले ऊँगली
दबाने को मजबूर कर दिया ।
अब अगर आम आदमी
पार्टी के सत्ता के छोटे से अनुभव की बात करें तो नज़र में आता है की अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में सत्ता संभालते
ही अपने वो दो वादे पूरे कर दिए थे , जिस पर राजनीतिक दलों से लेकर दिल्ली के
लोगों की भी नजर थी, मुफ्त पानी और आधी कीमत पर बिजली। अरविंद केजरीवाल के फैसले
लेने के इस तेज अंदाज ने लोगों का दिल भी जीत लिया था । देखना है कि यह नया कार्यकाल
भी पिछले कार्यकाल की तरह कुछ नया परोस पाने में कामयाब होगा ।हालांकि इन वायदों
को पूरा करने की कीमत सरकारी सब्सिडी से जाएगी ।लेकिन सैकड़ों सरकारी खर्चो से चल
रही योजनाओ के बनिस्बत इस सब्सिडी का लाभ सीधे आम आदमी तक पहुचने की उम्मीद की जा
रही है । जिसका सीधा लाभ आने वाले समय में केजरीवाल को मिल सकता है ।साथ ही पूरा
ना कर पाने का नुकसान भी केजरीवाल को ही उठाना पड़ेगा । ये फैसले ‘आप’ के प्रमुख चुनावी मुद्दे रहे हैं। मजबूत राजनीतिक संकल्प के बिना इन विषम
स्थितियों से पार पाना “आप” के लिए आसान भी नहीं होगा ।
आम आदमी
पार्टी (आप) ने अपनी पहली राजनीतिक धमक से ही भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय
पार्टियों को नया पाठ पढ़ा दिया है। राष्ट्रीय राजधानी की इस नवोदित पार्टी ने महज दो
साल के अंदर ही अपनी विशिष्ट पहचान बना ली है । कुछ अलग तरह कि राजनीति करने का
दावा करने के बाद उसे अमलीजामा पहनाने कि कोशिशे अच्छा समां बना रही है । लेकिन
अपने नए और अनुभवहीन मंत्री और कार्यकर्ताओं का खामियाजा भी केजरीवाल को भुगतना
पड़ेगा । जनता महंगाई और भ्रष्टाचार से छुटकारे के लिए आप का साथ दे तो रही है , पर
उनकी अपेक्षाए काफी बढ़ चुकी हैं ।और इन सबका पूरा हो पाना आसान नहीं दीखता । बहरहाल कुछ भी कहिये ,
आम आदमी पार्टी की कामयाबी और उनके
मनसूबे देख कर पूरे देश में उससे जुड़ने की होड़ मच गई है। लगभग सभी दलों के “ख़ास” में “आम” दिखने की होड़ नज़र आने लगी है । जोकि
लोकतंत्र के लिए एक अच्छा संकेत हो सकता है ।