वैसे तो मलमास (अधिमास) में कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता, मगर बिहार के नालंदा जिले के राजगीर में विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की अनोखी परंपरा है। तीन वर्षो में एक बार लगने वाला मलमास इस वर्ष 17 जून से शुरू होगा। मलमास के दौरान राजगीर में एक महीने तक विश्व प्रसिद्ध मेला लगता है, जिसमें देशभर के साधु-संत पहुंचते हैं।
राजगीर की पंडा समिति के रामेश्वर पंडित कहते हैं कि इस एक महीने में राजगीर में काला काग को छोड़कर हिंदुओं के सभी 33 करोड़ देवता राजगीर में प्रवास करते हैं। प्राचीन मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र राजा बसु द्वारा राजगीर के ब्रह्म कुंड परिसर में एक यज्ञ का आयोजन कराया गया था, जिसमें 33 करोड़ देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया गया था और वे यहां पधारे भी थे, लेकिन काला काग (कौआ) को निमंत्रण नहीं दिया गया था।
जनश्रुतियों के मुताबिक, इस एक माह के दौरान राजगीर में काला काग कहीं नहीं दिखते। इस क्रम में आए सभी देवी-देवताओं को एक ही कुंड में स्नानादि करने में परेशानी हुई थी, तभी ब्रह्मा ने यहां 22 कुंड और 52 जलधाराओं का निर्माण किया था।
इस ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी में कई युगपुरुष, संत और महात्माओं ने अपनी तपस्थली और ज्ञानस्थली बनाई है। इस कारण मलमास के दौरान यहां लाखों साधु-संत पधारते हैं। मलमास के पहले दिन हजारों श्रद्धालुओं ने राजगीर के गर्म कुंड में डुबकी लगाते हैं और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं।
पंडित अयोध्या मिश्र के मुताबिक, अधिमास के दौरान जो मनुष्य राजगीर में स्नान, दान और भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसके सभी पाप कट जाते हैं और वह स्वर्ग में वास का भागी बनता है। वे कहते हैं कि इस महीने में राजगीर में पिंडदान की परंपरा है। किसी भी महीने में मौत होने पर मात्र राजगीर में पिंडदान से ही उनकी मुक्ति मिल जाती है।
अधिमास के विषय में उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म के अनुसार दो प्रकार के वर्ष प्रचलित हैं एक सौर वर्ष जो 365 दिन का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष होता है जो आम तौर पर 354 दिन का होता है। इन दोनों वर्षो के प्रकार में करीब 10 दिन का अंतर होता है। 32 महीने के बाद इन दोनों प्रकार के वर्ष में एक चंद्र महीने का अंतर आ जाता है, यही कारण है कि तीन वर्ष के बाद एक वर्ष में एक ही नाम के दो चंद्र मास आ जाते हैं, जिसे अधिमास या मलमास कहा जाता है।
शास्त्रों में मलमास तेरहवें मास के रूप में वर्णित है। धार्मिक मान्यता है कि इस अतिरिक्त एक महीने को मलमास या अतिरिक्त मास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है।
‘ऐतरेय बाह्मण’ के अनुसार, यह मास अपवित्र माना गया है और ‘अग्निपुराण’ के अनुसार इस अवधि में मूर्ति पूजा-प्रतिष्ठा, यज्ञदान, व्रत, वेदपाठ, उपनयन, नामकरण आदि वर्जित हैं। इस अवधि में राजगीर सर्वाधिक पवित्र माना जाता है।
मिश्र ने बताया कि इस वर्ष 17 जून से 16 जुलाई तक सूर्य संक्रांति का अभाव है, जिस कारण अषाढ़ चंद्रमास को अधिमास माना गया है। इस महीने में विवाह, मुंडन, नववधू प्रवेश सहित सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं, परंतु विष्णु की पूजा को सवरेत्तम माना गया है।
उल्लेखनीय है कि राजगीर न केवल हिंदुओं के लिए धार्मिक स्थली है, बल्कि बौद्ध और जैन धर्मके श्रद्घालुओं के लिए भी पावन स्थल है।
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